आज के कोई सात साल पहले भारतीय भाषाओं का एक महापोर्टल शुरू हुआ था, नाम था- नेटजाल.कॉम। वह हिंदी और अंग्रेजी सहित नौ भा षाओं में बनाया गया था और खबरों व लेखों के अलावा ईमेल जैसी सुविधाएं भी प्रदान करता था। लेकिन अपनी स्थापना के एक-डेढ़ साल के भीतर ही नेटजाल बंद हो गया। हैदराबाद जैसे दक्षिण भारतीय शहर से निहारऑनलाइन के नाम से एक उत्कृष्ट वेब परियोजना शुरू हुई थी। दो-तीन साल संघर्ष करने के बाद इस पोर्टल के मालिकों ने भी ताला बंद कर दिया। रीडिफ.कॉम , जीडीनेट.कॉम , लिटरेटवर्ल्ड.कॉम, वीमनइन्फोलाइन.कॉम , इंडियाइन्फो.कॉम आदि के हिंदी संस्करण भी उत्कृष्ट होने के बावजूद ज्यादा समय तक नहीं चले। वजह यह थी कि उस समय भारतीय भाषाओं में न तो इंटरनेट आधारित पाठक थे और न ही आमदनी का कोई जरिया।

भारतीय भाषा भाषियों के बीच में कंप्यूटर और इंटरनेट दोनों का प्रसार देर से और अपेक्षाकृत धीमी गति से हुआ है। इसके स्वाभाविक कारण हैं। सबसे पहले तो आम मध्यवर्गीय भारतीय के लिए तीस हजार रुपए का कंप्यूटर खरीदना और ऊपर से इंटरनेट कनेक्शन रूपी साहूकार के मासिक बिल भरना ही बहुत मुश्किल है। ऊपर से कंप्यूटर सीखने पर आने वाला खर्च। मुझे याद है कि जब भारत में कंप्यूटर और इंटरनेट का नया-नया आगमन हुआ था तब मुहावरों की भाषा में कहें तो कुकुरमुलों की तरह कंप्यूटर इन्स्टीट्यूट खुल गए थे। उनमें से कई कंप्यूटर इन्स्टीट्यूट तो विंडोज पर बुनियादी कामकाज सिखाने और माइक्रोसॉफ्ट के वर्ड, एक्सेल, पावरप्वाइंट जैसे सॉफ्टवेयरों और ईमेल का प्रयोग सिखाने भर के लिए तीन-तीन महीने के कोर्स चलाते थे। वे इसके लिए तीन से पांच हजार तक रुपए फीस लेते थे। आज के छात्रों से यह बात कहेंगे तो वे हंसेंगे कि यह सब सीखने में तो हम तीन दिन भी नहीं लगाते।

खैर, वह उस जमाने का कंप्यूटर की दुनिया का अपना बिजनेस मॉडल था। ऐसा बिजनेस मॉडल जो लोगों की अनभिज्ञता पर आधारित था। अब जमाना धीरे-धीरे बदल रहा है। भारतीय भाषाओं की वेबसाइटों, पोर्टलों आदि को इंटरनेट पर लाने के रास्ते की ज्यादातर रुकावटें दूर हो चुकी हैं और माइक्रोसॉफ्ट के नवीनतम ऑपरेटिंग सिस्टम विन्डोज विस्टा के लोकिप्रय होने के बाद तो शायद हम यह भूल ही जाएं कि किसी जमाने में कंप्यूटर पर हिंदी में काम करना बहुत मुश्किल होता था। माइक्रोसॉफ्ट ने यूनिकोड के जरिए विन्डोज 2000 से ही हिंदी और कुछ अन्य भारतीय भाषाओं में काम करना सुलभ बना दिया था। यह सिलसिला विन्डोज एक्सपी में भी यथावत चला। लेकिन फिर भी इन दोनों ऑपरेटिंग सिस्टमों में भारतीय भाषाओं में काम करने के लिए कंप्यूटर पर हिंदी में कॉन्फीगरेशन करना पड़ता था और आईएमई आदि इन्स्टाल करने होते थे जो आम कंप्यूटर यूजर के लिए एक बहुत काम था। मैंने विंडोज विस्टा का जिक्र खास तौर पर इसलिए किया क्योंकि उसमें यूनिकोड समर्थन अंतरनिहित है। आपको अपनी भाषा के लिए अलग से कुछ इन्स्टाल करने की जरूरत नहीं है।

यह एक संयोग ही है कि एक ओर भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्वीकरण और उदारीकरण के दौर से गुजर रही है जिससे आम नागरिक आÆथक रूप से बेहतर हुआ है और दूसरी ओर यूनिकोड नामक टेक्नॉलॉजी ने कंप्यूटर के क्षेत्र में भाषायी सीमाओं को समाप्त कर दिया है। जिस तरह अर्थव्यवस्था का भूमंडलीकरण हुआ है उसी तरह यूनिकोड तकनीकी भूमंडलीकरण का प्रतीक है। आम आदमी की भाषा में कहें तो यूनिकोड वह टेक्नॉलॉजी है जो दुनिया की हर भाषा में कंप्यूटर, इंटरनेट और कंप्यूटिंग में सक्षम अन्य यंत्रों पर काम करना संभव कर देती है। यूनिकोड के आने के बाद कंप्यूटर पर हिंदी या गुजराती में काम करना भी उतना ही आसान है जितना कि अंग्रेजी में।

जो लोग शुरू से हिंदी वेबसाइटों, पोर्टलों आदि को देखते-पढ़ते और उनका प्रयोग करते रहे हैं वे जानते हैं कि उनकी सबसे बड़ी तकनीकी समस्या फोंट में निहित थी। हिंदी में अलग-अलग ढंग से काम करने वाले पचासों फोंट प्रचलित थे और फाइलों का आदान-प्रदान लगभग असंभव था। यह वो जमाना था जब लोग कंप्यूटर का इस्तेमाल एक परिष्कृत टाइपराइटर के रूप में करते थे। वेबसाइटों को देखने के लिए या तो फोंट डाउनलोड करना होता था या फिर वेबसाइट प्रकाशक डायनेमिक फोंट का प्रयोग करते थे। लेकिन भाषायी फोंटों का डायनेमिक रूप भी बहुत अच्छा नहीं होता था। इसीलिए डायनेमिक फोंट से युक्त वेबसाइटों पर दिखने वाले लेखों में अक्षरों के बीच में स्पेस और बीच-बीच में कुछ बक्से दिखाई देते थे। यही नहीं, हिंदी लेख के बीच-बीच में कहीं-कहीं अंग्रेजी की उल्टे-सीधी इबारत भी दिखाई दे जाती थी।

सौभाग्य से यूनिकोड के आने से वे समस्याएं खत्म हो गई हैं। अगर आपके कंप्यूटर में विन्डोज 2000, विन्डोज एक्सपी, विन्डोज विस्ता, रेड हैट लिनक्स, उबन्तु लिनक्स या मैकिन्टोश का नया ऑपरेटिंग सिस्टम मैक ओएस टेन इन्स्टाल्ड है तो आपको यूनिकोड हिंदी में बनी वेबसाइटों तथा पोर्टलों को देखने के लिए न तो फोंट डाउनलोड करने की जरूरत है और न ही वेबनिर्माताओं को डायनेमिक फोंट आदि का प्रयोग करने की। आप ठीक वैसे ही काम कर सकते हैं जैसे अंग्रेजी में करते हैं। ऐसा नहीं है कि आप यूनिकोड का डायनेमिक फोंट नहीं बना सकते। अगर आप अपनी साइट पर मंगल के अलावा कोई बेहतर यूनिकोड फोंट इस्तेमाल करते हैं तो उसे डायनेमिक फोंट में परिवÆतत कर अपने पोर्टल पर रख सकते हैं। लेकिन उसकी बाध्यता नहीं है। बिना डायनेमिक फोंट के भी आपकी वेबसाइट आराम से देखी और पढ़ी जा सकती है, अगर वह यूनिकोड का इस्तेमाल करती है।

जैसा कि आज का विषय है, हिंदी में वेबसाइट बनाना अब वाकई आसान हो गया है। लेकिन उससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि हिंदी में वेबसाइट का स्थायित्व भी आसान हो रहा है। अगर नेटजाल, निहार ऑनलाइन, लिटरेट वल्र्ड आदि अब तक सक्रिय होते तो शायद उन्हें बंद करने की जरूरत नहीं पड़ती। कारण, हिंदी में वेबसाइटों के लिए बिजनेस मॉडल का भी धीरे-धीरे विकास हो रहा है। पाठकों की तो कोई कमी है ही नहीं। वेबदुनिया, जागरण, प्रभासाक्षी और बीबीसी हिंदी के दैनिक पाठकों की संख्या अब बीस-पच्चीस लाख प्रतिदिन तक हो गई है। इससे आने वाले दिनों का अंदाजा आसानी से हो जाता है।


(प्रभा साक्षी से साभार)

1 comments:

  1. संजाल पर हिन्दी को स्थापित करने में बालेन्दु जी और प्रभा साक्षी का विशेष योगदान है।

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