कुछ ही दिन पूर्व एक विद्वान् लेखक का शोधपूर्ण तकनीकी लेख पढ़ा. “बहुत कठिन है डगर पनघट की”. इस लेख में पाँच तकनीकी बाधाओं का उल्लेख करते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया था कि इन समस्याओं का हल निकाले बिना हिंदी को इंटरनेट पर लाने के अब तक के तमाम प्रयासों समेत भविष्य के भी प्रयास प्रभावकारी नहीं हो सकेंगे. निश्चय ही यह स्थिति कुछ वर्ष पूर्व सही थी, लेकिन अब कंप्यूटर, इंटरनेट और ई-मेल के क्षेत्र में होने वाली नित नई खोज से ऐसा लगने लगा है कि अब कठिन नहीं रही डगर हिंदी इंटरनेट की. इन बाधाओं पर चर्चा करने से पूर्व एक अमरीकी इंटरनेट कंपनी की ओर से कराए गए सर्वेक्षण पर नज़र डालें. इस सर्वेक्षण के अनुसार पिछले तीन महीनों के दौरान भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या दुनिया में सबसे तेज़ गति से बढ़ रही है. यदि साइबर कैफे और मोबाइल के ज़रिए इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या को भी शामिल कर लिया जाए तो भारत में यह तादाद पाँच करोड़ से भी ज्यादा है. इस अभूतपूर्व वृद्धि का मुख्य कारण है हिंदी और भारतीय भाषाओं के लिए युनिकोड का व्यापक उपयोग.उक्त तकनीकी बाधाओं को दूर करने में भी युनिकोड की भूमिका ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण रही है.युनिकोड एक ऐसी कोडिंग प्रणाली है,जो विश्वव्यापी है और इसमें विश्व की सभी जीवंत भाषाएँ समाहित हैं. इसके कारण एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म निर्मित हो जाता है,जो फ़ॉन्टमुक्त होता है,ब्राउज़र मुक्त होता है और ऑपरेटिंग सिस्टम मुक्त भी होता है अर्थात् यदि आपके पास विंडोज़ 2000 या उससे ऊपर का कोई संस्करण है तो आप किसी भी युनिकोड के अनुकूल फ़ॉन्ट में विश्व की किसी भी भाषा में पाठ टंकित कर सकते हैं. विंडोज़ या लाइनेक्स आदि किसी भी ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग कर सकते हैं. इंटरनेट एक्सप्लोरर, मोज़िला या ऑपेरा आदि में से किसी भी ब्राउजर का उपयोग कर सकते हैं.विंडोज़, मैक, लाइनेक्स या सोलरिस में से किसी भी ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग कर सकते हैं अर्थात् इन सभी कंप्यूटर प्रणालियों में आधारभूत कोडिंग प्रणाली के रूप में युनिकोड तो अपना लिया गया है.अब सवाल है...यू.आर.एल. अर्थात् डोमेन नाम का...अब यह भी तकनीकी दृष्टि से हिंदी या किसी अन्य भारतीय भाषा में लिखना संभव हो गया है.जैसे साहित्य.com नाम से यू.आर.एल. बनाया जा सकता है.उक्त बाधाओं में तीसरी बाधा हिंदी में कुंजीपटल की विविधता बताया गया है. इसके समाधान के लिए बड़ी-बड़ी कंप्यूटर कंपनियाँ IME का उपयोग करने लगी हैं, जिसके अंतर्गत हिंदी जगत् में प्रचलित तीनों प्रमुख कुंजीपटलों में से किसी एक का उपयोग किया जा सकता है.यों मानक कुंजीपटल के रूप में इन्स्क्रिप्ट को डिफ़ॉल्ट कुंजीपटल के रूप में सभी कंप्यूटर प्रणालियों में स्थान दिया गया है और मात्र उपयोगकर्ताओं की सुविधा के लिए टाइपराइटर या रोमन लिपि के ध्वन्यात्मक कुंजीपटल की व्यवस्था की जाती है. अंतिम बाधा है..हिंदी वेबसाइट में खोज की सुविधा. युनिकोड के आगमन से अब यह बाधा भी दूर हो गई है. यदि आपकी वेबसाइट के निर्माण में युनिकोड फ़ॉन्ट का उपयोग किया गया है तो आप हिंदी में वांछित शब्द टाइप करके अपेक्षित सूचनाएँ प्राप्त कर सकते हैं.

इसमें संदेह नहीं कि इन तमाम बाधाओं के दूर होने के बाद भी इंटरनेट पर हिंदी की उपस्थिति कतई संतोषजनक नहीं कही जा सकती. फिर भी कुछ हलचल तो होने लगी है और इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. इसी एक वर्ष में राष्ट्रीय समाचार पत्रों की अधिकांश वेबसाइट युनिकोड में आ गई हैं. हिंदी का सबसे पहला पोर्टल वेबदुनिया युनिकोड में आ गया है.अभिव्यक्ति और अनुभूति जैसी साहित्यिक ई-पत्रिकाओं ने युनिकोड को अपना लिया है.भारत सरकार के कार्यालयों में भी युनिकोड के प्रति जागरूकता बढ़ने लगी है. भारत सरकार ने हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में जो कार्यालय ज्ञापन जारी किया है, उसमें भी हिंदी में निर्मित की जाने वाली वेबसाइटों में युनिकोड के व्यापक उपयोग का आग्रह किया गया है.यह दिलचस्प बात है कि सरकारी कार्यालयों से ज़्यादा तो व्यक्तिगत स्तर पर निर्मित ब्लॉग में युनिकोड का उपयोग किया जा रहा है.हिंदी ब्लॉग की तो मानो बाढ़- सी आ गई है.हाल ही में जयजयवंती के तत्वावधान में नई दिल्ली में आयोजित साहित्य संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध मीडिया विशेषज्ञ श्री उदय सहाय ने हिंदी और अंग्रेजी के अपने ब्लॉगों के अनुभव सुनाते हुए बताया कि उनके हिंदी के ब्लॉग पर पाठकों की प्रतिक्रिया कहीं अधिक मिलती रही हैं ..!

इसके अलावा,अब इंटरनेट पर विकिपीडिया के रूप में ऑन लाइन एनसाइक्लोपीडिया और शब्दकोश.कॉम जैसी सुविधाएँ भी मिलने लगी है.अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद के लिए गूगल की पहल का कमियों के बावजूद स्वागत किया जाना चाहिए.हिंदी शिक्षण के लिए अनेक वेब पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं. इनमें सबसे प्रमुख है, प्रो.सूरजभान सिंह के निर्देशन में सीडैक द्वारा विकसित लीला वेब पाठ्यक्रम.हिंदी में डिजिटल पुस्तकालय बनाने के प्रयास भी कुछ संस्थाओं द्वारा किए जा रहे हैं. अब तो आप घर बैठे अंग्रेज़ी-हिंदी का काम भी कर सकते हैं. युनिकोड के कारण ही हिंदी में ई-मेल भेजना और प्राप्त करना अब कतई कठिन नहीं रह गया है.हाल ही में कुछ मित्रों ने हिंदी-विमर्श नाम से एक मंच बनाया है, जिस पर ई-मेल के माध्यम से न केवल परस्पर सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है, बल्कि हिंदी की तकनीकी समस्याओं का समाधान भी किया जाता है. इससे यह स्पष्ट है कि हिंदी में इंटरनेट और ई-मेल भेजने में अब कोई तकनीकी बाधा शेष नहीं रह गई है.

() विजय के मल्होत्रा

3 comments:

  1. gyanvardhak jankari ke liye dhanyawad

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  2. विजय कुमार मल्‍होत्रा जी का आलेख आने से ब्‍लॉग उत्‍सव समृद्धित्‍व को प्राप्‍त हुआ है।

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  3. सुन्दर जानकारी मिली विजय जी के आलेख से

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